बाबर: भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक – एक विस्तृत ऐतिहासिक अध्ययन
बाबर: भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक – एक विस्तृत ऐतिहासिक अध्ययन
भूमिका
ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर (1483-1530) भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक थे। वे तैमूर और चंगेज खान के वंशज थे और अपने नेतृत्व कौशल, सैन्य रणनीति और प्रशासनिक दूरदृष्टि के लिए प्रसिद्ध थे। यह आलेख बाबर के जीवन, विजय अभियानों, प्रशासनिक नीतियों और उनके ऐतिहासिक महत्व पर केंद्रित है।
बाबर का प्रारंभिक जीवन और उद्गम
- बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को अंदीज़ान, फ़रग़ना (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में हुआ था।
- वे तैमूरी वंश के शासक थे और उनकी माता मंगोल वंश से थीं, जिससे उनमें चंगेज खान और तैमूर की रक्तरेखा जुड़ती थी।
- मात्र 12 वर्ष की उम्र में बाबर ने फरगना की गद्दी संभाली लेकिन स्थानीय संघर्षों के कारण समरकंद और फरगना पर शासन कायम नहीं रख पाए।
- इसके बाद उन्होंने काबुल (1504) पर विजय प्राप्त कर वहाँ अपनी सत्ता स्थापित की और यहीं से भारत पर आक्रमण की योजना बनाई।
बाबर का भारत अभियान और पानीपत की लड़ाई (1526)
- बाबर ने दिल्ली की सल्तनत पर अधिकार करने के लिए इब्राहिम लोदी के विरुद्ध अभियान चलाया।
- 21 अप्रैल 1526 को पानीपत की पहली लड़ाई में उन्होंने इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया।
- इस युद्ध में बाबर ने तोपों (artillery) और तुलुगमा पद्धति (Tulughma Strategy) का प्रयोग किया, जिससे भारतीय सेना पहली बार घातक बारूदीय हथियारों का सामना कर रही थी।
- इस जीत के साथ ही भारत में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी।
बाबर के अन्य सैन्य अभियान
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खानवा का युद्ध (1527) – मेवाड़ के राणा सांगा के खिलाफ
- बाबर ने राणा सांगा की संयुक्त राजपूत सेना को हराया।
- इस जीत के बाद उन्होंने "गाजी" की उपाधि धारण की।
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चंदेरी का युद्ध (1528) – मेदिनी राय के खिलाफ
- यह युद्ध बुंदेलखंड के चंदेरी क्षेत्र में लड़ा गया था, जहाँ बाबर ने विजय प्राप्त की।
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घाघरा का युद्ध (1529) – अफगानों के खिलाफ
- इस युद्ध में बाबर ने बंगाल और बिहार के अफगानों को पराजित किया, जिससे उनकी सत्ता और मजबूत हुई।
बाबर का प्रशासन और नीतियाँ
- बाबर ने केन्द्रीय शासन प्रणाली अपनाई।
- उन्होंने जागीरदारी व्यवस्था को बढ़ावा दिया, जो आगे चलकर अकबर के शासनकाल में और विकसित हुई।
- बाबर धार्मिक सहिष्णुता के पक्षधर थे और उन्होंने हिन्दुओं के खिलाफ किसी प्रकार की कड़ी नीति नहीं अपनाई।
- उन्होंने "बाबरनामा" लिखा, जो उनकी आत्मकथा है और उसमें उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तृत विवरण दिया है।
बाबर की साहित्यिक और सांस्कृतिक रुचि
- बाबर न केवल एक कुशल योद्धा थे बल्कि वे एक विद्वान कवि और लेखक भी थे।
- उन्होंने तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा "बाबरनामा" लिखी, जिसे बाद में फारसी और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया।
- उन्हें बागवानी और स्थापत्य कला में भी रुचि थी, उन्होंने भारत में चारबाग (चार बागों वाला उद्यान) की परंपरा शुरू की, जो आगे चलकर मुगल स्थापत्य कला का महत्वपूर्ण भाग बनी।
बाबर की मृत्यु और विरासत
- बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर 1530 को आगरा में हुई।
- उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें काबुल में दफनाया गया।
- उनके पुत्र हुमायूं ने मुगल साम्राज्य की बागडोर संभाली लेकिन प्रारंभिक वर्षों में अफगानों के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा।
इतिहासकारों की दृष्टि से बाबर
- सातिश चंद्र (Satish Chandra): "बाबर भारत में केवल एक विजेता नहीं बल्कि एक कुशल शासक और सैन्य रणनीतिकार भी थे।"
- इरफान हबीब (Irfan Habib): "बाबर का प्रशासन तैमूरी प्रभाव से प्रेरित था, लेकिन उन्होंने भारतीय प्रशासन को भी स्वीकार किया।"
- स्टेनली लेन-पूल (Stanley Lane-Poole): "बाबर की आत्मकथा एक उत्कृष्ट ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो उनकी बुद्धिमत्ता और नेतृत्व क्षमता को दर्शाती है।"
निष्कर्ष
बाबर भारतीय इतिहास में केवल एक विजेता के रूप में ही नहीं बल्कि एक दूरदर्शी शासक और उत्कृष्ट सैन्य रणनीतिकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी शासन प्रणाली, सैन्य तकनीक और सांस्कृतिक योगदान ने आगे चलकर मुगल साम्राज्य की नींव को और मजबूत किया।
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